Suryakant Tripathi ‘Nirala’ was an Indian poet, novelist, essayist, and story-writer who wrote in Hindi. He was also an artist, who drew many sketches. Poems are such a medium by which a person starts making compositions in his mind and the poet who gave shape and words to such poems was ‘Suryakant Tripathi Nirala’. Whose poems used to please the minds of the people like this, or even today, the importance of those words is so much that whenever people read their poems, it is as if all the mistakes are lost in the words of those poems, and today it is like this. We are going to introduce ourselves to some of the poems of Suryakant Ji, for which he has been honored with many awards…

(1). Suryakant Tripathi Nirala Poem in Hindi – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता
मित्र के प्रति (suryakant tripathi nirala ki kavita)
कहते हो, ‘‘नीरस यह
बन्द करो गान-
कहाँ छन्द, कहाँ भाव,
कहाँ यहाँ प्राण ?
था सर प्राचीन सरस,
सारस-हँसों से हँस;
वारिज-वारिज में बस
रहा विवश प्यार;
जल-तरंग ध्वनि; कलकल
बजा तट-मृदंग सदल;
पैंगें भर पवन कुशल
गाती मल्लार।’’
(2). SuryaKant Tripathi Nirala poems in Hindi
करती विश्राम, कहीं
नहीं मिला स्थान,
अन्ध-प्रगति बन्ध किया
सिन्धु को प्रयाण;
उठा उच्च ऊर्मि-भंग-
सहसा शत-शत तरंग,
क्षुब्ध, लुब्ध, नील-अंग-
अवगाहन-स्नान,
किया वहाँ भी दुर्दम
देख तरी विघ्न विषम,
उलट दिया अर्थागम
बनकर तूफान।
(3). अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे
बालक-मन
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
(4). गीत गाने दो मुझे तो
वेदना को रोकने को
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे
हाथ जो पाथेय थे, ठग
ठाकुरों ने रात लूटे
कंठ रूकता जा रहा है
आ रहा है काल देखो
भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर
देखते हैं लोग लोगों को
सही परिचय न पाकर
बुझ गई है लौ पृथा की
जल उठो फिर सींचने को
(5). सच है – Famous Suryakant Tripathi Nirala poem
यह सच है
तुमने जो दिया दान दान वह
हिन्दी के हित का अभिमान वह
जनता का जन-ताका ज्ञान वह
सच्चा कल्याण वह अथच है
यह सच है
बार बार हार हार मैं गया
खोजा जो हार क्षार में नया
उड़ी धूल, तन सारा भर गया
नहीं फूल, जीवन अविकच है
यह सच है – Poem by Nirala